गीत रामायण आकाशवाणी के इतिहास का एकमात्र अभूतपूर्व संगीत कार्यक्रम था, जो पूरे वर्ष एक ही कवि द्वारा रचित,एक ही संगीतकार द्वारा संगीतबद्ध किया जाता था और पुणे आकाशवाणी द्वारा १ अप्रैल १९५५ से १९ अप्रैल १९५६ तक लगातार प्रसारित किया जाता था।
वर्ष १९५३ के आसपास, पुणे आकाशवाणी केंद्र की शुरुआत हुई ग.दि.माडगूलकरजी के एक मित्र जिनका नाम श्री सीताकांत लाड था, एक कार्यक्रम नियोजक के रूप में पुणे आए,उन्होंने ग.दि.माडगूलकरजी से नभोवाणी के लिए लगातार कुछ लिखने का आग्रह किया, और इस महाकाव्य का जन्म हुआ। रामायण में महर्षी वाल्मिकी ने, रामकथा को २८००० श्लोकों में लिखा है और उसी कथा को ग.दि.माडगूलकरजी ने ५६ गीतों में लिखा है।
गोवा के कवि, गीतकार दत्तप्रसाद जोगजी ने मराठी गीतरामायण का हिंदी संस्करण किया है। यह संस्करण मराठी गीतरामायण के मूल छंद, लय,और मधुरता को कायम रखकर किया है,सन २०१९ में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा इसका पुस्तक रूप में प्रकाशन हुआ है। गोवा के प्रतिभाशाली गायक किशोर भावे तथा चिन्मय कोल्हटकर द्वारा इस हिंदी गीतरामायण का गायन संपन्न हुआ है। सुधीर फडके जी के मूल धूनों पर ही चिन्मय कोल्हटकरजी ने हिंदी गीतों का हिंदी वाद्यवृंद के साथ संगीत संयोजन किया है। गोवा के संजय दांडेकर द्वारा अल्बम का ध्वनिमुद्रण संपन्न हुआ है।
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शीघ्र जानकी चलो गुफा समीप ही रहो
शस्त्र सिद्धता करें राम सावधान हो राम सावधान हो
मेघगर्जना सदृश सी उठी है गूंज भी
दौड़ते ते चले पशु छोड भक्ष्य भाग भी
कंपितांग ओढकर हैं खडे हिरन सभी
सैन्य है ढलान पर, धूल सी उडी तभी
तर्क ना करे रिपु दीप्त अग्नि शांत हो!!
सैन्य कौन सा यहाँ निर्मनुष्य प्रांत में ?
तालवृक्षपर चढ़ूँ झाँकूँ शाख आड़ में !
सैन्य की दिशा अभी आ रही है ध्यान मे
कौन वीर कि दिखे शौर्य संपदा हमें , चाप रज्जु तानकर बंधु सिद्ध ही रहो!
कैक अश्वरूढ हैं कैक तो पदस्थ हैं
धर्म स्नात सारथी वीर सिद्धहस्त हैं
कौन एक वीर जो तेज है सशस्त्र है
आप सी है आकृति दीर्घबाहु दृढ है। बंधुघात की तृषा कहीं न बंधुशोध हो!
मूढ़ भरत आ रहा बंधु घात साधने
तृषार्त बाण हैं मेरे कठंनाल छेदने
पुत्र नाश फल दिया कैकयी कुकर्म ने
अश्व नाद सी सुनो ध्वनी उठी है पास में बंधुयुद्ध की घडी लगे कहीं समीप हो
एक मै रहुँ खडा लक्षलक्ष मार दूँ
मूढ़ लोकपाल के सैन्य को पछाड दूँ
क्षात्र धर्मपर चलूँ रिपु ससैन्य नाश दूँ
कैकयी कुपुत्र को सुयोग्य मृत्युदंड दूँ नीचता कुकर्म का एक बार अंत हो।।
क्रोध की हुई सीमा पुनश्च दैव घात में
क्यों है नित्य आपदा राम के ही भाल में
पापमुक्त हो धरा मात्र एक बाण में
भरत खंड जोड़ दूँ दिव्य राम राज्य में ! अधर्म को परास्त कर राम ही अजेय हो।।
गदिमा गौरव | Special Quotes
लेखक पु.भा.भावे:
वास्तवतेतील गूढत्व व साधुत्व पाहावयासही माणसापाशी एक दृष्टी असावी लागते.माडगूळकरांचे पाशी ही दुर्मिळ दृष्टी आहे.ते नुसते आकाशाकडे पाहत नाहींत तर आकाशतत्त्वाकडे पाहतात.ह्या तात्त्विक दृष्टीनेच त्यांना आशयसंपन्न कथाचित्रे काढण्याचे सामर्थ्य दिले-अगदी दिवाकर कृष्णांपासून चालत आलेली चांगल्या कथांची परंपरा आज श्री.माडगूळकर चालवीत आहेत.